
लखनऊ के सपा मुख्यालय में समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने बृहस्पतिवार को एक बार फिर उस मुद्दे पर जोर दिया, जो आज की सियासत में न केवल बहस का विषय बना हुआ है, बल्कि देश की आत्मा और पहचान का सवाल भी खड़ा कर रहा है। उन्होंने कहा— “धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद की सोच ही इस देश की गंगा-जमुनी तहजीब को बचाए हुए है।”
यह बयान सीधे तौर पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के उस वक्तव्य के जवाब में आया, जिसमें उन्होंने संविधान में धर्मनिरपेक्ष और समाजवादी शब्दों के जोड़े जाने को भारत की आत्मा पर कुठाराघात करार दिया था।
धर्मनिरपेक्षता बनाम सांप्रदायिकता की सियासत
अखिलेश यादव ने अपने संबोधन में स्पष्ट शब्दों में कहा कि
“धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद लोगों को जोड़ने का काम करते हैं।” उनका तर्क था कि ये विचारधाराएं समाज में समरसता लाती हैं और आपसी भाईचारे को मजबूती देती हैं। उन्होंने निशाना साधते हुए कहा कि “जो लोग समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता का विरोध करते हैं, वे दरअसल सांप्रदायिक ताकतें हैं, जो समाज को बांटने का काम कर रही हैं।”
इस टिप्पणी में अखिलेश ने परोक्ष रूप से यह संकेत दिया कि मौजूदा सत्ताधारी दल और उसके सहयोगी संगठन अपने राजनीतिक हित साधने के लिए समाज को धर्म और जाति के आधार पर बांटने का काम कर रहे हैं।
एकाधिकारी प्रवृत्ति पर प्रहार
अखिलेश यादव ने कहा, “एकाधिकारीवादी लोग समाजवाद का विरोध करते हैं क्योंकि इससे उनका वर्चस्व कमजोर होता है।” उनका कहना था कि समाजवाद की सोच सत्ता और संसाधनों का विकेंद्रीकरण करती है, जिससे कुछ लोगों की सत्ता और धन पर एकाधिकार की लालसा पर आघात होता है।
उन्होंने तीखा कटाक्ष करते हुए कहा, “सोशलिस्ट और सेकुलर होने के लिए दिल बड़ा होना चाहिए। हार्टलेस लोग इसका विरोध करते हैं, क्योंकि वे समाज को जोड़ने की नहीं, तोड़ने की राजनीति करते हैं।”
गंगा-जमुनी तहज़ीब का संदर्भ
अखिलेश यादव का धर्मनिरपेक्षता पर जोर देना महज सियासी बयान नहीं था। उन्होंने गंगा-जमुनी तहज़ीब की रक्षा को भारत की सांस्कृतिक जिम्मेदारी बताया। उनका कहना था कि “यह तहज़ीब हमें सिखाती है कि सभी धर्मों, जातियों और वर्गों के लोग मिल-जुलकर रह सकते हैं।”
यह वक्तव्य ऐसे समय में आया है जब देशभर में धार्मिक ध्रुवीकरण के मुद्दे पर बहस तेज है और समाज में कट्टरता के मामलों में इजाफा देखा जा रहा है।
योगी सरकार पर सीधा हमला
हालांकि अखिलेश ने सीधे नाम नहीं लिया, पर स्पष्ट था कि उनका निशाना योगी आदित्यनाथ और उनकी सरकार पर था। उनका यह कहना कि धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद पर सवाल उठाना सांप्रदायिकता को बढ़ावा देना है, सीधे तौर पर मौजूदा सत्ता के विचारधारा पर प्रहार था।
क्या वास्तव में खतरे में है धर्मनिरपेक्षता?
विश्लेषकों का मानना है कि धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद पर बहस महज राजनीतिक हथियार नहीं, बल्कि यह देश की मौलिक पहचान का सवाल है। संविधान सभा की बहसों से लेकर आज तक धर्मनिरपेक्षता को देश की बुनियाद बताया गया है। भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में यह विचारधारा समाज को एकसूत्र में पिरोती है।
लेकिन जब सत्ता पक्ष की ओर से धर्मनिरपेक्षता को भारत की आत्मा पर कुठाराघात कहा जाता है, तो यह केवल सियासी बयान नहीं रह जाता, यह देश की सामूहिक चेतना को झकझोरता है।
अखिलेश यादव के इस बयान से साफ है कि धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद आज भी भारतीय राजनीति का केंद्र बने हुए हैं। एक ओर जहां सत्ताधारी दल इन मूल्यों पर पुनर्विचार की बात करता है, वहीं विपक्ष इसे देश की आत्मा और एकता का आधार बताकर जनता को चेताने की कोशिश करता है।
इस पूरे प्रकरण से यह सवाल जरूर उठता है—क्या आने वाले समय में भारत की गंगा-जमुनी तहजीब और धर्मनिरपेक्षता केवल किताबों तक सिमट जाएगी या फिर समाज इसका सचेतन बचाव करेगा?