
संपत्ति, सियासत और संदेह: एक घोटाले की परतें
उत्तर प्रदेश के बरेली और बदायूं ज़िलों में सामने आया ‘अमर ज्योति यूनिवर्स निधि लिमिटेड’ घोटाला सिर्फ एक आर्थिक अपराध नहीं है, बल्कि यह आम आदमी के भरोसे, रिश्तों की आड़ में किए गए विश्वासघात और राजनीति में बढ़ती नैतिक शून्यता की मिसाल बन गया है।
इस घोटाले में कंपनी ने लोगों को बड़े मुनाफे के सुनहरे सपने दिखाकर करोड़ों रुपये इकट्ठा किए और जब पैसा लौटाने का वक्त आया, तो निदेशक और उनके एजेंट भाग खड़े हुए।
ठगी का जाल: 100 करोड़ का फरेब, 15 हज़ार पीड़ित
‘अमर ज्योति यूनिवर्स निधि लिमिटेड’ नाम की इस कंपनी ने करीब 15,000 निवेशकों से 100 करोड़ रुपये से अधिक की राशि जमा की। बरेली और बदायूं के लोग इस बात पर भरोसा करते रहे कि उनका पैसा बढ़ेगा, लेकिन कंपनी ने एक दिन अचानक दफ्तर समेट लिया और फरार हो गई।
शिकायतों के बाद जब मामले की परतें खुलीं, तो सामने आया कि इस कंपनी के निदेशक शशिकांत मौर्य और उसका भाई सूर्यकांत मौर्य, जो भाजपा बरेली महानगर इकाई का महामंत्री भी था, खुद ही पूरे खेल के केंद्र में थे।
राजनीति का चेहरा बेनकाब
इस पूरे मामले का सबसे चिंताजनक पहलू यह रहा कि जब तक सूर्यकांत मौर्य पर ठगी का केस दर्ज नहीं हुआ, तब तक पार्टी में उसके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई। अब जब मामला तूल पकड़ चुका है और मीडिया में आ गया है, भाजपा ने उसे पार्टी से निष्कासित कर दिया और उसकी सक्रिय सदस्यता समाप्त कर दी।
भाजपा महानगर अध्यक्ष अधीर सक्सेना के अनुसार, ‘कतिपय कारणों’ से यह निर्णय लिया गया। पर सवाल ये उठता है कि क्या राजनीति में जवाबदेही अब केवल तब मानी जाएगी जब नामजद एफआईआर हो जाए?
रिश्तेदारी भी नहीं आई काम, अपनों को लगाया चूना
सबसे हैरान करने वाला तथ्य यह है कि सूर्यकांत और शशिकांत ने केवल आम जनता को ही नहीं, अपने रिश्तेदारों और साढ़ू तक को ठगने में संकोच नहीं किया। बरेली निवासी संतोष मौर्य, जो सूर्यकांत के साढ़ू हैं, ने अपनी जमीन बेचकर 2.5 करोड़ रुपये कंपनी में निवेश किए। बदले में उन्हें झूठे वादे और बाउंस हो चुके चेक मिले।
संतोष ने बताया कि न केवल उन्होंने बल्कि ससुराल पक्ष के कई लोगों ने भी सूर्यकांत पर विश्वास करके लाखों रुपये गंवा दिए।
सुनियोजित ठगी और संपत्तियों का छलावा
सूत्रों की मानें तो दोनों भाइयों ने वर्षों पहले ही ठगी की योजना बना ली थी। उन्होंने बरेली व बदायूं की संपत्तियां बेचकर नोएडा, गुरुग्राम और अन्य शहरों में दूसरे नामों पर संपत्ति खरीद ली, ताकि कानूनी कार्रवाई से बचा जा सके। अब NCLT कोर्ट और पुलिस दोनों इस योजना की तह तक जाने में जुटे हैं।
एसआईटी भी मामले की जांच कर रही है और कई एजेंटों व साझेदारों की भूमिका की छानबीन हो रही है।
निष्कर्ष: जनता की पूंजी, नेताओं की बेपरवाही
‘अमर ज्योति’ प्रकरण हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि जब राजनीति के मंच पर बैठे लोग ही ऐसे कृत्य में लिप्त पाए जाते हैं, तो आम आदमी किस पर भरोसा करे? यह मामला केवल आर्थिक अपराध नहीं, बल्कि राजनीतिक नैतिकता की गिरावट का भी प्रतीक है।
जरूरत है कि ऐसी घटनाओं पर सिर्फ कार्रवाई ही नहीं, बल्कि राजनीतिक दलों की जिम्मेदारी और पारदर्शिता को भी कानून से जोड़ा जाए। ताकि जनता को दोबारा ऐसे जाल में फंसने से रोका जा सके।
यह एक चेतावनी है – जनता को और राजनीति को दोनों को।