
लेखक: एक बेचैन पत्रकार की कलम से
देश के बहुजन आंदोलन की गूंज और दलित अधिकारों की लड़ाई लड़ने वाला चेहरा आज खुद कठघरे में खड़ा है। इंदौर की पीएचडी स्कॉलर डॉ. रोहिणी घावरी के सनसनीखेज आरोपों ने न केवल चंद्रशेखर आज़ाद की छवि पर सवाल उठाए हैं, बल्कि उस पूरे सामाजिक नैतिकता पर भी प्रश्नचिन्ह लगा दिया है, जिसे लेकर वे अब तक राजनीति की सीढ़ियां चढ़ते रहे।
अब ज़रा सोचिए — जो आदमी मंच से समाज को इंसाफ और बराबरी की सीख देता रहा, वही व्यक्ति किसी महिला के प्रेम, निष्ठा और सपनों के साथ छल करता नजर आ रहा है।
डॉ. रोहिणी का दर्द उनकी शिकायत में साफ झलकता है। वे लिखती हैं कि चंद्रशेखर ने विवाह का झांसा देकर उनसे भावनात्मक और शारीरिक शोषण किया। 2020 में स्विट्जरलैंड की गलियों से शुरू हुआ ये रिश्ता आखिर 2024 में दिल्ली की सड़कों पर धोखे की दास्तां बन गया।
प्रेम में राजनीति का ज़हर
ये कहानी सिर्फ दो लोगों की निजी जिंदगी का मामला नहीं है। ये उस समाज का आईना है जहाँ मंच से बड़े-बड़े आदर्शों की बात करने वाले लोग, परदे के पीछे वही आदतें निभाते हैं जिन पर खुद भाषण देते हैं।
“ये प्रेम नहीं था, ये प्रेम के नाम पर राजनीति थी। जहां एक स्त्री के समर्पण को वोट बैंक की तरह इस्तेमाल किया गया और फिर सत्ता की तरह छोड़ दिया गया।”
“क्या अब ये सवाल नहीं उठना चाहिए कि आंदोलन की राजनीति करने वालों की निजी नैतिकता पर भी जनता सवाल करे? क्या अब भी सिर्फ नारे लगाकर किसी का असली चरित्र छुपाया जा सकता है?”
वो झूठ, जो प्रेम का मुखौटा बन गया
डॉ. रोहिणी ने बताया कि कैसे चंद्रशेखर ने खुद को अविवाहित बताकर शादी का भरोसा दिलाया। वे उनके आंदोलन में साथ खड़ी रहीं। विदेश में रहते हुए भी उनके अभियानों का प्रचार किया, लेकिन बदले में मिला क्या? — धोखा, अपमान, और समाज की गालियां।
सोचिए, एक बहुजन नेता, जिनका संघर्ष समाज में समानता लाने का है, वही समानता अपने निजी जीवन में क्यों भूल जाते हैं?
और फिर वही घिसी-पिटी स्क्रिप्ट —
👉 “मैं आत्महत्या कर लूंगा”
👉 “बहुजन आंदोलन छोड़ दूंगा”
👉 “तुमने अगर रिश्ता खत्म किया तो समाज में बर्बाद कर दूंगा”
क्या यही होती है आंदोलन की राजनीति? क्या यही होती है समाज सुधारक की नैतिकता?
समाज और सत्ता की चुप्पी
विडंबना देखिए — जिस समाज को चंद्रशेखर आज़ाद बदलने निकले थे, वही समाज आज इस मामले पर चुप्पी साधे है। कोई प्रेस कांफ्रेंस नहीं, कोई सफाई नहीं। बस इतना कहा:
“मैं अदालत में जवाब दूंगा।”
महिला आयोग का दरवाजा और न्याय की उम्मीद
अब डॉ. रोहिणी ने राष्ट्रीय महिला आयोग से गुहार लगाई है। उनका कहना है:
“मैं मानसिक, सामाजिक, और भावनात्मक रूप से पूरी तरह टूट चुकी हूं। कड़ी से कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए।”
पर सवाल ये है — क्या ये मामला भी उन हज़ारों मामलों की तरह दब जाएगा? या फिर ये समाज को झकझोर पाएगा?
क्योंकि ये महज व्यक्तिगत धोखा नहीं है। ये उस पूरी राजनीति का पाखंड है जहां मंच पर नारी सम्मान की बात होती है, और पर्दे के पीछे उसकी भावनाओं को कुचला जाता है।
आंदोलन, नैतिकता और दोहरे मापदंड
बहुजन आंदोलन के नाम पर अगर महिलाओं का शोषण होता रहेगा तो फिर ये आंदोलन किसके लिए?
क्या बहुजन महिलाओं की आवाज सिर्फ मंच पर नारे लगाने तक सीमित रहेगी?
“ये खबर सिर्फ स्क्रीन पर एक स्क्रॉलिंग हेडलाइन नहीं है। ये वो आईना है जिसमें हमें खुद को देखना होगा। और तय करना होगा कि हम किस समाज का सपना देख रहे हैं।”