लखनऊ की एक शांत सी दिखने वाली कॉलोनी में जब नारकोटिक्स विभाग की टीम ने छापा मारा, तो वहां से खांसी की दवा नहीं, नशे का ज़हर बरामद हुआ। 5,353 बोतलें। हां, पांच हज़ार से भी ज़्यादा फर्जी कफ सिरप की बोतलें, जिनमें इलाज नहीं, लत और मौत भरी हुई थी।
कहते हैं, बीमारी का इलाज दवा होती है—but जब वही दवा नशे का हथियार बन जाए, तो सवाल केवल कानून का नहीं, इंसानियत का भी उठता है।
केंद्रीय नारकोटिक्स ब्यूरो (CBN) ने इस कार्रवाई में एक व्यक्ति को गिरफ्तार किया है, जिसके पास न तो कोई लाइसेंस था, न ही कोई वैध दस्तावेज़। लेकिन धंधा ऐसा कि बड़ी-बड़ी फार्मा कंपनियों के नकली लेबल तक छाप दिए गए। बोतलों पर लिखा था “Codeine Syrup”, लेकिन अंदर मिला था Alprazolam और Clonazepam जैसे प्रतिबंधित सेडेटिव्स का घातक मिश्रण।
डिप्टी नारकोटिक्स कमिश्नर प्रवीण बाली ने स्पष्ट किया कि यह पूरा कारोबार एक “यूनिक मॉडस ऑपरेंडी” के तहत चलाया जा रहा था, जिसमें असली ब्रांड की आड़ में नकली ज़हर बेचा जा रहा था।
अब सोचिए, ये ज़हर किसे बेचा जा रहा था? शायद किसी छात्र को, जो पढ़ाई के तनाव में सिरप समझकर पी गया हो। या किसी मज़दूर को, जिसे खांसी में राहत चाहिए थी और बदले में मिल गई नशे की लत।
यह घटना हमें चेतावनी देती है कि आज की तारीख में नकली दवा का धंधा सिर्फ आर्थिक अपराध नहीं है—यह समाज के सबसे नाजुक हिस्से को नष्ट करने की साज़िश है। ये सिरप सिर्फ नकली नहीं थे, ये भरोसे का गला घोंटने वाले उत्पाद थे।
और सबसे खतरनाक बात ये है कि यह मामला कोई अपवाद नहीं है। देशभर में ऐसे अवैध नेटवर्क दिन-ब-दिन पनप रहे हैं, जहां मेडिकल साइंस को मुनाफे और नशे के बीच कुचला जा रहा है।
CBN की कार्रवाई सराहनीय है, लेकिन अब ज़रूरत है इस नेटवर्क की जड़ों तक पहुंचने की। अकेले एक आरोपी की गिरफ्तारी काफी नहीं, जब तक पूरी सप्लाई चेन को उजागर कर सज़ा न दी जाए।
खांसी की दवा के नाम पर जहर बेचने वालों को सिर्फ कानून नहीं, समाज भी माफ न करे।
क्योंकि अगली बार जब कोई मां अपने बच्चे को सिरप देने के लिए बोतल खोले, तो उसमें इलाज हो—इल्ज़ाम नहीं
