June 17, 2025
abhisar sharma

लेखक: मीडिया विश्लेषक की दृष्टि से विशेष रिपोर्ट

हाल ही में एक चौंकाने वाला दावा सामने आया है जिसने भारतीय मीडिया जगत में भूचाल ला दिया है। वरिष्ठ पत्रकार अभिसार शर्मा ने एक गंभीर आरोप को सोशल मीडिया और अपने मंचों पर उठाया है, जिसमें कहा गया है कि “#गोदी_मीडिया पाकिस्तानियों को पैसा देकर भारत का अपमान करवाती है।” इस दावे के पीछे उन्होंने एक पाकिस्तानी पत्रकार के बयान का हवाला दिया है, जिसमें उसने कथित रूप से यह कहा कि कुछ भारतीय मीडिया चैनल उन्हें पैसे देकर भारत-विरोधी बयान दिलवाते हैं।

यह दावा कई सवाल खड़े करता है – क्या यह सच है? यदि हां, तो इसके पीछे की मंशा क्या है? और सबसे महत्वपूर्ण – इसका देश की छवि और जनमानस पर क्या असर पड़ता है?


अभिसार शर्मा का आरोप: सत्तापक्ष समर्थक मीडिया पर सीधा हमला

अभिसार शर्मा लंबे समय से भारतीय मीडिया में हो रहे “विचलनों” पर आवाज़ उठाते आए हैं। उन्होंने इस मुद्दे को भी मीडिया की निष्पक्षता और जवाबदेही से जोड़ते हुए कहा कि गोदी मीडिया न सिर्फ अपने दर्शकों को भ्रमित कर रही है, बल्कि अब देश के सम्मान से भी खेल रही है।

उनका कहना है कि TRP की दौड़ में और एक विशेष राजनीतिक नैरेटिव को मज़बूत करने के लिए कुछ मीडिया संस्थान “दुश्मन देश” के पत्रकारों को पैसे देकर भारत-विरोधी बयान दिलवा रहे हैं ताकि फिर उन्हें ही अपने चैनलों पर दिखाकर राष्ट्रवाद का दिखावा किया जा सके।


पाकिस्तानी पत्रकार का कथित दावा: “हमसे बयान दिलवाए जाते हैं”

इस पूरे विवाद की जड़ में एक पाकिस्तानी पत्रकार का बयान है, जो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है। उस पत्रकार ने किसी वीडियो इंटरव्यू में दावा किया है कि “भारतीय मीडिया हमें पैसे देता है कि हम भारत के खिलाफ कुछ बोलें, ताकि वे उसे अपने चैनलों पर दिखाकर प्रोपेगेंडा फैला सकें।”

हालांकि, इस वीडियो की सत्यता और उस पत्रकार की पहचान की अभी तक स्वतंत्र पुष्टि नहीं हो सकी है। लेकिन इस बयान को आधार बनाकर अभिसार शर्मा ने जो सवाल उठाए हैं, वे मीडिया की साख और उद्देश्य पर गंभीर प्रश्न खड़े करते हैं।


मीडिया की विश्वसनीयता पर बड़ा सवाल

इस दावे का सीधा असर देश की मीडिया की अंतरराष्ट्रीय और घरेलू साख पर पड़ सकता है। यदि कुछ चैनल इस तरह के हथकंडों का इस्तेमाल कर रहे हैं, तो यह केवल नैतिक पतन नहीं बल्कि राष्ट्रहित के खिलाफ भी है।

क्यों करेगा कोई चैनल ऐसा?

विश्लेषकों का मानना है कि:

  • ऐसे बयान दिखाकर मीडिया चैनल राष्ट्रवादी भावनाओं को उभारना चाहते हैं।
  • राजनीतिक दलों के समर्थन में भावनात्मक मुद्दों को तेज करना आसान होता है जब कोई “बाहरी दुश्मन” दिखाया जाए।
  • TRP की होड़ में “ड्रामाई कंटेंट” दिखाना ज़्यादा लाभकारी है बनिस्बत तथ्यपरक विश्लेषण के।

क्या सरकार इस पर जांच करेगी?

यह मामला अब सोशल मीडिया से निकलकर जनचर्चा और पत्रकारिता की विश्वसनीयता पर बहस का मुद्दा बन चुका है। यदि इस दावे की जांच नहीं होती, तो यह आगे और कई अफवाहों को जन्म दे सकता है।

निष्कर्ष:

“गोदी मीडिया” शब्द अब सिर्फ आलोचना नहीं, बल्कि एक बड़ी बहस का रूप ले चुका है। अभिसार शर्मा जैसे पत्रकारों की जिम्मेदारी है कि वे ऐसे मामलों में तथ्यों की तह तक जाएं, और जनता की भी जिम्मेदारी है कि वे हर खबर को तथ्यों के साथ जांचें।

यदि यह आरोप सही निकलता है, तो यह मीडिया के इतिहास में एक काला अध्याय होगा। लेकिन अगर यह सिर्फ एक सनसनीखेज़ बयान है, तो यह भी मीडिया की विश्वसनीयता को नुकसान पहुंचाने वाली प्रवृत्तियों का उदाहरण बनेगा।


नोट: इस रिपोर्ट में जो भी दावे हैं, वे सोशल मीडिया व संबंधित पत्रकारों के बयानों पर आधारित हैं। सत्यता की पुष्टि हेतु जांच आवश्यक है। भारत जैसे लोकतंत्र में मीडिया की भूमिका केवल सूचना देना नहीं, बल्कि जवाबदेही तय करना भी है – चाहे वह सरकार की हो या खुद मीडिया की।

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