
देश में साइबर अपराधों का ग्राफ तेजी से बढ़ता जा रहा है। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2025 के पहले छह महीनों में ही भारत में 12 लाख से अधिक साइबर अपराधों की शिकायतें दर्ज की गई हैं। यह आंकड़ा न केवल चिंताजनक है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि डिजिटल दुनिया में सुरक्षा को लेकर भारत कितनी गंभीर चुनौती का सामना कर रहा है।
सबसे ज्यादा प्रभावित राज्य — महाराष्ट्र

इन साइबर अपराधों में सबसे ज्यादा मामले महाराष्ट्र से सामने आए हैं। महाराष्ट्र में सबसे अधिक डिजिटल लेनदेन और ऑनलाइन गतिविधियां होती हैं, जिसके चलते यह राज्य साइबर अपराधियों के निशाने पर रहता है। इसके बाद उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, दिल्ली और तेलंगाना का स्थान है।
प्रमुख साइबर अपराध — ठगी और धोखाधड़ी में बढ़ोतरी
सरकारी आंकड़ों और विशेषज्ञों की मानें तो ऑनलाइन ठगी, डिजिटल फ्रॉड, सोशल मीडिया हैकिंग, फ़िशिंग ईमेल, और फर्जी लिंकों के जरिए लोगों को झांसे में लेकर उनसे पैसे ऐंठना आम होता जा रहा है। कई मामलों में तो साइबर अपराधी बैंक अधिकारी बनकर कॉल करते हैं और लोगों की व्यक्तिगत जानकारी लेकर उनके खाते से पैसे उड़ा लेते हैं।
महिलाएं और बुजुर्ग सबसे ज्यादा निशाने पर
विशेषज्ञों का कहना है कि महिलाओं और बुजुर्गों को सबसे ज्यादा टारगेट किया जा रहा है क्योंकि इन वर्गों में तकनीकी जागरूकता की कमी होती है। वहीं युवाओं को भी ऑनलाइन गेम्स और फर्जी ऐप्स के जरिए शिकार बनाया जा रहा है।
सरकार और पुलिस की तैयारी
गृह मंत्रालय ने हाल ही में सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को साइबर अपराध से निपटने के लिए अधिक संसाधन और प्रशिक्षण देने का आश्वासन दिया है। ‘1930’ हेल्पलाइन नंबर और www.cybercrime.gov.in पोर्टल के माध्यम से नागरिकों से अपील की गई है कि वे साइबर अपराधों की तत्काल रिपोर्ट करें।
इसके साथ ही CERT-In (Indian Computer Emergency Response Team) और राज्य साइबर सेल लगातार निगरानी कर रहे हैं, लेकिन अपराधियों की तकनीक भी लगातार अपग्रेड हो रही है, जिससे यह लड़ाई कठिन होती जा रही है।
विश्लेषण: क्या हो रही है चूक?
विश्लेषकों का मानना है कि इंटरनेट की बढ़ती पहुंच के साथ-साथ साइबर सुरक्षा को लेकर लोगों में पर्याप्त जागरूकता नहीं है। डिजिटल साक्षरता की कमी, कमजोर पासवर्ड, संदिग्ध ऐप्स का इस्तेमाल और ओटीपी साझा करना आम गलतियां हैं, जिनका फायदा अपराधी उठा रहे हैं।
वहीं, कई राज्यों में साइबर पुलिस की संख्या और ट्रेनिंग अभी भी जरूरत से कम है, जिससे जाँच और कार्रवाई धीमी पड़ जाती है। तकनीकी संसाधनों की कमी और जटिल कानूनी प्रक्रिया भी इस लड़ाई को मुश्किल बना रही है।
भारत तेजी से डिजिटल हो रहा है, लेकिन डिजिटल सुरक्षा उसी गति से विकसित नहीं हो पा रही। जब तक आम नागरिक, सरकारी एजेंसियां और तकनीकी कंपनियां मिलकर साइबर सुरक्षा के लिए संगठित कदम नहीं उठाएंगे, तब तक यह खतरा और गहराता जाएगा। साइबर अपराध केवल एक तकनीकी चुनौती नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा और नागरिकों की आजीविका से जुड़ा गंभीर मसला बन चुका है।