June 17, 2025
Black and white macro shot of barbed wire, blurring the background for an abstract feel.

पश्चिम एशिया एक बार फिर बारूद के ढेर पर बैठा है — और इस बार चिंगारी ईरान और इज़रायल के बीच खुली जंग बन चुकी है। बीते तीन रातों से हो रही बमबारी, मिसाइल हमलों और चेतावनियों के बीच अब यह सवाल और बड़ा हो चला है कि क्या ये सिर्फ़ जवाबी कार्रवाई है या किसी बड़े रणनीतिक परिवर्तन की भूमिका रची जा रही है?

मिसाइलें, मौतें और संदेश

ईरान द्वारा इज़रायल के मध्य और उत्तरी हिस्सों पर किए गए मिसाइल हमलों में अब तक कम से कम 10 लोगों की मौत हो चुकी है। दूसरी ओर, इज़रायली डिफेंस फोर्स (IDF) ने यह स्वीकार किया है कि उन्होंने ईरान के परमाणु बुनियादी ढांचे पर हमले किए हैं। इन हमलों की संवेदनशीलता और सामरिक महत्व को देखते हुए यह अनुमान लगाना कठिन नहीं कि यह सिर्फ़ शुरुआत हो सकती है।

सूचना की जंग: जब कैमरे बंद होते हैं

ईरान सरकार की मीडिया पर लगाई गई पाबंदियों के चलते बीबीसी जैसे अंतरराष्ट्रीय मीडिया संस्थान अपने पत्रकारों को ईरान नहीं भेज पा रहे हैं। ऐसे में इज़रायल की ओर से हुए नुकसान की पुष्टि या जांच स्वतंत्र रूप से कर पाना लगभग असंभव है। रिपोर्टिंग अब बयानों और अप्रत्यक्ष स्रोतों पर निर्भर हो चुकी है — जिससे ‘सूचना की लड़ाई’ एक अलग ही मोर्चा बन चुकी है।

ईरानी राजशाही का नया दांव

ईरान के पूर्व शाह के पुत्र और निर्वासित राजकुमार रज़ा पहलवी ने बीबीसी से बातचीत में यह दावा किया कि इज़रायल के हमलों ने ईरान की आम जनता को वर्तमान कट्टरपंथी शासन के खिलाफ “फिर से ऊर्जावान” बना दिया है। उन्होंने खुले शब्दों में ‘रेजिम चेंज’ यानी सत्ता परिवर्तन को ही इस संकट का अंतिम समाधान बताया।

उनका यह बयान ऐसे समय आया है जब तेहरान की सड़कों पर जनता में आक्रोश और वैश्विक मंचों पर ईरान की छवि लगातार गिर रही है। रज़ा पहलवी, जो लंबे समय से विदेशी शक्तियों से ईरान में लोकतंत्र बहाल करने का समर्थन मांगते रहे हैं, अब इसे ‘इतिहास में बदलाव का सही समय’ बता रहे हैं।

IDF की मनोवैज्ञानिक रणनीति: चेतावनी और चेहरा

IDF के प्रवक्ता अविचाय अद्रई ने फारसी भाषा में ईरानी नागरिकों को चेतावनी देते हुए कहा कि वे हथियार निर्माण केंद्रों के आसपास न रहें। यह एक सीधा संकेत है कि इज़रायल अब सिर्फ सैन्य ठिकानों तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि “नरम लक्ष्य” के आसपास भी सर्जिकल स्ट्राइक्स की संभावना बना रहा है।

अद्रई की शैली दिलचस्प है — उनकी मुस्कराती तस्वीरें, वीडियो संदेश और विनम्र भाषा… लेकिन संदेश वही: खतरा मंडरा रहा है। पहले फिलिस्तीन, फिर लेबनान और अब ईरान — अद्रई का चेहरा अब अरब दुनिया में इज़रायली हमलों का प्रतीक बन चुका है। ‘शेख अद्रई’ कहकर उनकी व्यंग्यात्मक आलोचना भी की जाती है।

क्या परमाणु समझौता अब सपना बन चुका है?

पिछले तीन दिनों की घटनाओं ने अमेरिका समेत तमाम वैश्विक शक्तियों को चुप करा दिया है। जिस ‘न्यूक्लियर डील’ की संभावनाएं बची थीं, वे इन हमलों के साथ ध्वस्त होती दिख रही हैं। रूस और चीन जहां चुप हैं, वहीं अमेरिका भी फिलहाल ‘स्टैंडबाय मोड’ में है। भारत जैसे देश, जो दोनों देशों से संबंध रखते हैं, उनकी भी स्थिति पेचीदा हो चुकी है।

निष्कर्ष:

ईरान और इज़रायल के बीच बढ़ता टकराव अब किसी एक जवाबी हमले या सामरिक नीति की लड़ाई नहीं है — यह सत्ता, विचारधारा और अस्तित्व की लड़ाई बन चुकी है।
जहां एक ओर ईरान की जनता बदलाव की उम्मीद में है, वहीं इज़रायल इस पूरे क्षेत्र में अपनी सैन्य श्रेष्ठता और राजनीतिक प्रभाव को मजबूती से स्थापित करना चाहता है।

इस युद्ध में हथियार केवल मिसाइल नहीं हैं — शब्द, चेहरा और संदेश भी उतने ही घातक हैं।

आने वाले दिन बताएंगे कि यह संघर्ष सीमित रहेगा या इतिहास एक बार फिर खुद को रक्तरंजित रूप में दोहराएगा।


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