पटना | Choir India News Network | राजनीतिक विश्लेषण
बिहार की राजनीति एक बार फिर नैतिकता बनाम सत्ता की सियासत के मोड़ पर खड़ी दिख रही है। शहरी विकास मंत्री और बीजेपी विधायक जीवेश मिश्रा को 15 साल पुराने फर्जी दवा मामले में राजस्थान की अदालत ने दोषी करार दिया है, जिससे सत्तारूढ़ एनडीए की छवि पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं।
हालांकि कोर्ट ने उन्हें 7,000 रुपये जुर्माना भरने और अच्छे व्यवहार का वादा करने के बाद रिहा कर दिया, लेकिन राजनीतिक गलियारों में “सजा तो सजा होती है” के तर्क के साथ यह मुद्दा गरमा गया है।
फैसला आया, विपक्ष का हमला शुरू
विपक्ष ने इसे भाजपा की दोहरी नैतिकता करार दिया है। कांग्रेस के मीडिया विभाग प्रमुख राजेश राठौर ने मिश्रा के तत्काल इस्तीफे की मांग की है। उन्होंने कहा कि भाजपा को भी उन्हें पार्टी से निष्कासित करना चाहिए। उनका तर्क है कि मिश्रा से जुड़े फर्जी दवा नेटवर्क की गहराई से जांच होनी चाहिए, ताकि सच जनता के सामने आ सके।
वहीं पूर्णिया से सांसद पप्पू यादव ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मिश्रा को कैबिनेट से बर्खास्त करने की मांग की है। उन्होंने उन्हें “फर्जी दवा माफिया” बताते हुए कहा कि ऐसे लोग आम जनता की जान से खिलवाड़ करते हैं।
क्या है मामला?
यह केस सितंबर 2010 का है, जब राजस्थान के राजसमंद ज़िले में कांसर डग्स डिस्ट्रीब्यूटर पर ड्रग इंस्पेक्शन हुआ था। वहां Alto Health Care Pvt. Ltd. सहित तीन कंपनियों द्वारा सप्लाई की गई Ciproline-500 टैबलेट्स को मिलावटी और घटिया दर्जे की पाया गया।
जीवेश मिश्रा Alto Health Care के डायरेक्टर हैं।
इस केस में कोर्ट ने उन्हें और आठ अन्य को 4 जून 2025 को दोषी माना, और 1 जुलाई को सजा सुनाई गई।
नीतीश कुमार के सामने अब क्या विकल्प हैं?
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लिए यह मामला सिर्फ एक व्यक्ति की सजा का नहीं, बल्कि गठबंधन की नैतिक छवि से जुड़ा है। सवाल यह है कि क्या वे अपने मंत्रिमंडल में ऐसे व्यक्ति को बनाए रखेंगे, जिस पर जनस्वास्थ्य से जुड़े गंभीर आरोपों में दोष सिद्ध हो चुका है?
यदि मिश्रा का इस्तीफा नहीं लिया गया, तो यह विपक्ष को 2025 और 2026 के चुनावों में बड़ा नैतिक हथियार देगा — खासकर जब जनता की नजर भ्रष्टाचार और जवाबदेही पर है।
भविष्य की राजनीति पर असर
- भाजपा के लिए यह मामला राजनीतिक संवेदनशीलता का इम्तिहान है।
- विपक्ष को जनता के बीच नैरेटिव गढ़ने का मौका मिल गया है — “फर्जी दवा बेचने वाला मंत्री” एक भावनात्मक मुद्दा बन सकता है।
- अगर कार्रवाई नहीं हुई, तो यह मुद्दा जातीय समीकरणों से ऊपर उठकर जनस्वास्थ्य और नैतिकता के सवाल पर केंद्रित हो सकता है।
क्या जीवेश मिश्रा देंगे नैतिक जिम्मेदारी का परिचय, या फिर यह मामला भी राजनीतिक शोर में गुम हो जाएगा?
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