August 29, 2025
Close-up of tactical military gear including a rifle, radio, and vest on a dark background.

लखनऊ की मिट्टी को अब बारूद की गंध से पहचाना जाने लगा है। मलिहाबाद में पकड़ी गई असलहा फैक्ट्री के खुलासे ने न सिर्फ सुरक्षा एजेंसियों की नींद उड़ा दी है, बल्कि एक बार फिर हमें सोचने पर मजबूर कर दिया है कि क्या इस देश में अब भी सुरक्षा से बड़ी कोई राजनीति नहीं?

हकीम सलाऊद्दीन – एक नाम जो फिलहाल खुफिया एजेंसियों के रडार पर है। पुलिस के अनुसार, यह शख्स असलहों की तस्करी कर कश्मीर तक का नेटवर्क चलाता था। POK के कुछ संदिग्धों से उसके बातचीत के साक्ष्य भी मिले हैं। पुलिस को एक लैपटॉप हाथ लगा है, जिसमें संभवतः असलहा तस्करों का पूरा ब्योरा है।

इतना ही नहीं – जिस घर के बगल में एक पुराना सिनेमा हॉल खड़ा था, वहीं असलहे छिपाए जाते थे। सवाल ये है कि इतने वर्षों से ये खेल चल रहा था और हमारे खुफिया तंत्र को भनक तक नहीं लगी?

लेकिन हमें यहां सिर्फ खबर नहीं, उस खबर के पीछे के सन्नाटे को समझना होगा। क्या यह सिर्फ एक “आतंकी कनेक्शन” की खबर है, या फिर एक बार फिर देश की सामाजिक बुनावट को तोड़ने वाला नैरेटिव गढ़ा जा रहा है?

किसी भी देश की आंतरिक सुरक्षा उसके नागरिकों के भरोसे पर टिकी होती है, न कि उनके नामों और धर्मों पर। एक आरोपी की जांच होनी चाहिए — जरूर होनी चाहिए, लेकिन जब उस जांच के हर अपडेट को साम्प्रदायिक नजरों से परोसा जाता है, तो यह आतंकवाद से भी खतरनाक हो जाता है।

जब मीडिया हेडलाइन बनाता है “POK कनेक्शन मिला” या “कश्मीर तक तस्करी”, तो क्या वह जांच पूरी होने तक रुक नहीं सकता? क्या उसे आरोपी को आरोपी कहने की बजाय ‘धर्म का प्रतिनिधि’ बना देना जरूरी होता है?

“जब कोई आरोपी सलमान नाम का हो, तो वह आतंकवादी बन जाता है, लेकिन जब वह सुरेश होता है, तो उसे मानसिक रूप से अस्थिर या ‘भटका हुआ’ कहा जाता है — क्यों?”

असलहा फैक्ट्री का खुलासा भयानक है, लेकिन उससे भी भयानक है उसका राजनीतिक इस्तेमाल। अगर सच में कोई राष्ट्र-विरोधी गतिविधि है, तो उसे दबाने नहीं दिया जाना चाहिए — मगर क्या जांच का मतलब अब सिर्फ वही है जो सुर्खियों में फिट हो जाए?

हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि भारत की ताकत उसकी विविधता और न्याय प्रणाली में है। अगर उसी न्याय का गला घोंटकर हम पूर्व-निर्णय करने लगें, तो असली अपराधी कभी पकड़ा नहीं जाएगा — और एक पूरी कौम हमेशा शक के कटघरे में खड़ी रहेगी।

इसलिए सवाल उठाइए — क्योंकि सच्ची देशभक्ति डर में नहीं, सवाल करने में होती है।

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