
लखनऊ।
नवाबी तहज़ीब, शाही खानपान और अवधी व्यंजनों की पहचान रखने वाला लखनऊ अब वैश्विक गैस्ट्रोनॉमी के नक्शे पर अपनी जगह बनाने की ओर अग्रसर है। प्रसिद्ध यूनेस्को क्रिएटिव सिटीज नेटवर्क (UCCN) में लखनऊ को “सिटी ऑफ गैस्ट्रोनॉमी” श्रेणी में शामिल करने की औपचारिक प्रक्रिया शुरू हो चुकी है।
फिलहाल, यह प्रतिष्ठित खिताब भारत में केवल हैदराबाद के पास है। लेकिन अब लखनऊ भी इस वैश्विक मान्यता की ओर मज़बूती से कदम बढ़ा चुका है।
“हमने आधिकारिक तौर पर यूनेस्को में नामांकन भेज दिया है,” लखनऊ मंडलायुक्त रोशन जैकब ने पुष्टि की।
“जून के अंत तक हम आवश्यक अतिरिक्त डेटा भी भेज देंगे। इसके बाद यूनेस्को द्वारा साइट विजिट और मूल्यांकन की प्रक्रिया हो सकती है। लखनऊ की पाक परंपरा केवल ऐतिहासिक नहीं है—यह जीवित, विकसित होती संस्कृति है जो आज भी उतनी ही प्रासंगिक है।”
एक जीवित विरासत: शाही रसोई से सड़क तक की यात्रा
नामांकन प्रक्रिया की कमान राज्य के पर्यटन और संस्कृति विभाग ने संभाली है, जिसके तहत लखनऊ की समृद्ध पाक परंपराओं को पेश किया जा रहा है। इस डोज़ियर को तैयार करने की ज़िम्मेदारी विरासत संरक्षण विशेषज्ञ आभा नारायण लांबा को सौंपी गई है।
“लखनऊ की पाक विरासत केवल नवाबों की रसोई तक सीमित नहीं रही,” लांबा बताती हैं।
“यह भोजन की संस्कृति ब्राह्मणों, बनियों, कायस्थों, खत्रियों और कामगार वर्ग तक फैली हुई है। यहां के कबाब, खस्ता, पूरी-सब्ज़ी, मलाई पान और मोतीचूर लड्डू—हर व्यंजन एक सांस्कृतिक कथा बुनता है।”
लांबा इसे “जीवंत पाक पारिस्थितिकी तंत्र” कहती हैं—जहाँ व्यंजन सिर्फ स्वाद नहीं, बल्कि शहर की आत्मा को बयान करते हैं।
यूनेस्को की कतार में लखनऊ का दावा मजबूत क्यों है?
वर्तमान में, इटली का अल्बा, पेरू का अरेक्विपा, ब्राजील का बेलेम, और ऑस्ट्रेलिया का बेंडिगो जैसे शहर पहले से ही UCCN के “सिटी ऑफ गैस्ट्रोनॉमी” क्लब का हिस्सा हैं।
विशेष सचिव (पर्यटन) ईशा प्रिया ने बताया कि नामांकन अब केंद्र सरकार की संस्कृति मंत्रालय द्वारा समीक्षा के दौर में है।
“टीम ने एक ठोस, डेटा-सपोर्टेड प्रस्तुति दी है जो अंतरराष्ट्रीय स्तर की कसौटी पर खरी उतरती है।”
“खाना नहीं, एक कहानी है लखनऊ”: स्थानीय विशेषज्ञों की राय

स्थानीय खानपान उद्यमी अहद अरशद कहते हैं:
“दम पुख्त, बारीक मसालों की परत और धीमी आंच पर पकाए व्यंजनों में जो कला है, वह लखनऊ को विशिष्ट बनाती है। यह शहर खाने के माध्यम से अपनी विरासत सुनाता है।”
वहीं पाक विशेषज्ञ आदिल हुसैन इसे “पूर्ण संवेदी अनुभव” बताते हैं।
“जहां हैदराबाद बिरयानी और हलीम के लिए जाना जाता है, लखनऊ की थाली में मुगलई से लेकर स्ट्रीट फूड तक हर स्वाद की गहराई है।”
एक शहर, एक स्वाद, एक पहचान
यह तथ्य कि लखनऊ मांसाहारी भोजन के लिए विख्यात है, लेकिन शाकाहारी व्यंजन जैसे बाजपेई की पूरी, दुर्गा के खस्ते, मलाई पान और मोतीचूर लड्डू भी उतनी ही लोकप्रियता रखते हैं, इसकी विविधता को प्रमाणित करता है।
“लखनऊ की थाली में स्वाद नहीं, संस्कृति परोसी जाती है।”
अब इंतज़ार है अंतिम फैसले का
नामांकन की प्रक्रिया अंतिम चरण में है। यूनेस्को की ओर से फील्ड मूल्यांकन और फाइनल अप्रूवल के बाद यदि लखनऊ को यह खिताब मिल जाता है, तो यह न केवल शहर की अंतरराष्ट्रीय पहचान को नई ऊंचाई देगा, बल्कि पर्यटन, स्थानीय व्यंजनों और सांस्कृतिक उद्यमों को भी नया आयाम मिलेगा।
लखनऊ अब सिर्फ नवाबों का शहर नहीं रहेगा, बल्कि वैश्विक फूड मैप पर एक चमकता सितारा बन सकता है — एक बार में एक कबाब।