
“एक ईंट से हत्या और हज़ारों सवाल — मऊ की राजनीति की सड़कों पर खून बहता रहा, और थाने की दीवारें मौन रहीं…”
उत्तर प्रदेश के मऊ ज़िले से मंगलवार की रात जो खबर आई, उसने न सिर्फ शहर को दहला दिया, बल्कि एक बार फिर यह साबित कर दिया कि यूपी की राजनीति और अपराध के रिश्ते को कोई दीवार नहीं रोक सकती — न सरायलखंसी थाना, न सरकार का कानून-व्यवस्था का दावा, न ही कोई पोस्टर जिसमें मुस्कराते चेहरे बदलाव का वादा करते हैं।
सपा नेता और कुख्यात गैंगस्टर गुलशन यादव की सरेआम हत्या, एक गैंगवार का हिस्सा कम और एक सियासी स्क्रिप्ट का आख़िरी पन्ना ज़्यादा लगती है।
🔥 मामला क्या है?
मऊ शहर के कोतवाली क्षेत्र में रेलवे स्टेशन और रोडवेज़ के बीच की वो जगह, जहां आमतौर पर यात्रियों की भीड़ होती है, मंगलवार को अचानक एक क्राइम सीन में बदल गई।
गुलशन यादव अपने दोस्त रणधीर यादव के साथ टहलने निकला था। तभी बाइक सवार बदमाश आए, हमला किया, और सड़क किनारे पड़ी ईंटों से गुलशन को इस कदर पीटा कि उसकी सांसें वहीं थम गईं।
पुलिस को सूचना मिली, घटनास्थल पर भारी पुलिसबल पहुँचा, शव को पोस्टमार्टम के लिए भेजा गया।
कहानी खत्म? नहीं… असली कहानी तो अब शुरू होती है।
🧨 गुलशन यादव कौन था?
गुलशन यादव का नाम मऊ की सियासत और अपराध के काले पन्नों में दर्ज था।
सपा का स्थानीय नेता था, लेकिन उसकी पहचान एक गैंगस्टर की थी।
2022 के एक हत्या के मामले में जेल गया, हाल ही में जमानत पर बाहर आया था।
उसकी मौजूदगी ही मऊ के अंडरवर्ल्ड में उबाल ला देती थी।
मगर ये हत्या सिर्फ व्यक्तिगत रंजिश का नतीजा नहीं दिखती।
ये एक “सियासी सफ़ाई” जैसा प्रतीत होती है।
🕳️ सियासी ऐंगल: क्या ये राजनीतिक सफ़ाया था?
उत्तर प्रदेश की राजनीति में यह ट्रेंड नया नहीं है कि जो अपराधी नेता बन जाएं, उनका सफाया या तो ‘एनकाउंटर पॉलिटिक्स’ से होता है या फिर ‘गैंगवार’ की आड़ में।
गुलशन यादव की हत्या कई सियासी संकेत देती है:
- गुलशन यादव का सपा से जुड़ाव
वह न सिर्फ एक पार्टी कार्यकर्ता था, बल्कि चुनावी समीकरणों में भी उसकी अहम भूमिका थी। स्थानीय वोट बैंक पर उसकी पकड़ मजबूत थी — खासकर यादव और मुस्लिम समुदाय में। कुछ लोग तो उसे आगामी नगर निकाय चुनावों में उतारने की भी तैयारी कर रहे थे। - भाजपा का ‘माफिया-मुक्त यूपी’ एजेंडा
योगी सरकार लंबे समय से ‘माफिया-मुक्त उत्तर प्रदेश’ का नारा देती रही है। गुलशन जैसे गैंगस्टर नेताओं का अंत सरकार के इसी एजेंडे को पोषित करता है, चाहे वो सीधे एनकाउंटर में हो या गुप्त रणनीति से। - अंदरूनी राजनीतिक रंजिश
सूत्र बताते हैं कि गुलशन के पार्टी के भीतर ही कुछ विरोधी थे। उसके अचानक बाहर आ जाने से कुछ लोगों को अपना वर्चस्व खतरे में लगने लगा था। राजनीतिक जमीन पर कब कौन किसे उखाड़ दे, ये तय करना अब पुलिस नहीं, सत्ता समीकरण करने लगे हैं। - यूपी में बढ़ती ‘Political Elimination’ की परंपरा
अपराधी राजनेताओं का सफाया अब लोकतांत्रिक प्रक्रिया से नहीं, हिंसा से होने लगा है। और जब पुलिस जांच की दिशा “हमलावरों की तलाश” कहकर बंद गली में छोड़ दी जाती है, तो समझ लीजिए कि हत्या की स्क्रिप्ट कहीं और लिखी गई थी।
ईंट से हत्या: प्रतीक या क्रूरता?
गुलशन की हत्या किसी गोली से नहीं, किसी तेज़धार हथियार से नहीं, बल्कि सड़क पर पड़ी ईंट से की गई।
इससे दो बातें निकलकर आती हैं:
- या तो हत्या करने वाले इतने निश्चिंत थे कि कोई उन्हें रोकेगा नहीं — पुलिस के इतने क़रीब होने के बावजूद।
- या फिर ये हत्या “नज़ीर” देने के लिए की गई — एक संदेश, एक प्रतीक कि अब “राजनीति में अपराध की जगह खत्म हो रही है।”
लेकिन विडंबना देखिए, अपराध भी वही है, केवल किरदार बदल रहे हैं।
👁️ जनता क्या देख रही है?
गुलशन यादव का मारा जाना लोगों में डर से ज़्यादा आशंका पैदा कर रहा है।
एक तरफ सरकार कहती है कि अपराधियों को बख्शा नहीं जाएगा, दूसरी तरफ अपराधी नेता खुलेआम राजनीति करते हैं और फिर अचानक मारे जाते हैं —
ये कौन सी लोकतांत्रिक न्याय व्यवस्था है जिसमें जमानत से छूटकर आया व्यक्ति कुछ ही दिनों में मार डाला जाता है, और पुलिस कहती है ‘जांच जारी है’?
क्या यह ‘मॉडल लॉ एंड ऑर्डर’ का हिस्सा है, या ‘साइलेंट ऑपरेशन क्लीन अप’?
📉 क्या यह मऊ की राजनीति में बदलाव की शुरुआत है?
गुलशन यादव की हत्या से न सिर्फ एक गैंग का वर्चस्व टूटा है, बल्कि मऊ की राजनीतिक समीकरणों में भी उबाल आ गया है।
एक पूरा तबका जो गुलशन के सहारे सत्ता में हिस्सेदारी चाहता था, अब नेतृत्व विहीन हो चुका है।
अभी से यह चर्चा शुरू हो गई है कि अब इस “खाली कुर्सी” को कौन भरेगा?
क्या गुलशन का बेटा राजनीति में आएगा?
क्या किसी और गैंग से नया नेता उभरेगा?
या फिर —
क्या मऊ अब नेताओं की जगह ईंटों से तय करेगा कि कौन जिएगा और कौन मरेगा?
एक मौत, कई मतलब
गुलशन यादव की हत्या को केवल एक गैंगवार या पुरानी दुश्मनी का मामला कह देना बेहद आसान होगा।
यह घटना उस अंधेरे का संकेत है जो हमारी राजनीति और कानून के बीच गहराता जा रहा है।
जिस राज्य में अपराधी नेता बनते हैं, और नेता अपराधियों को पालते हैं — वहां मौतें सिर्फ हत्या नहीं होतीं,
वो व्यवस्थाओं की घोषणा होती हैं — कि अब फैसला ईंट करेगी, वोट नहीं।