June 17, 2025
simran gupta

लखनऊ… शहर जहां अदब और तहज़ीब की मिसालें दी जाती हैं, जहां की गलियों में आज भी ‘पहले आप’ की गूंज सुनाई देती है। लेकिन इसी शहर की एक रात ऐसी भी आई, जब एक लड़की के कपड़े पुलिस ने सड़क पर खींचे, उसकी आवाज दबाने की कोशिश की, और समाज के मुँह पर एक और तमाचा जड़ दिया।

उस लड़की का नाम है सिमरन गुप्ता, जिसे लखनऊ वाले अब ‘मॉडल चायवाली’ के नाम से जानते हैं। लेकिन यह नाम महज़ एक ब्रांड नहीं, एक संघर्ष, एक क्रांति और एक आत्मनिर्भरता की जिंदा मिसाल है।

रात के सन्नाटे में गूंजते चीखों के वीडियो

रविवार की रात थी, घड़ी की सुइयाँ जब 12 बजा रही थीं, तब लखनऊ के इंजीनियरिंग कॉलेज चौराहे पर चाय की खुशबू नहीं, चीखें उठ रही थीं। पुलिस का दल वहाँ पहुँचा और देर रात दुकान खुली होने पर आपत्ति जताई। सिमरन गुप्ता ने नियमों की बात सुनी, लेकिन जब उसने अवैध वसूली से इनकार किया, तो वर्दीधारी कानून के रक्षक हाथ छोड़ बैठे।

वायरल वीडियो में जो दृश्य सामने आया, उसने लखनऊ को शर्मसार कर दिया—पुलिसकर्मी न सिर्फ़ उसके साथ बदसलूकी करते हैं, बल्कि उसके कपड़े पकड़कर खींचते हैं, धक्का-मुक्की करते हैं और स्टॉल पर हंगामा करते हैं। यह पूरा घटनाक्रम कार में बैठे एक युवक ने रिकॉर्ड किया और सोशल मीडिया पर डाल दिया। वीडियो ने जो दिखाया, वह वो था जिसे अक्सर ‘बेदख़ल’ कर दिया जाता है—सिस्टम की असलियत।

पुलिस से सवाल—वसूली से इनकार करना क्या गुनाह है?

सिमरन का सीधा आरोप है कि पुलिस ने अवैध वसूली की मांग की थी। उसने जब ना कहा, तो उसी इनकार की सज़ा उसे थप्पड़ों और ज़िल्लत के रूप में मिली। सवाल ये नहीं कि दुकान देर से खुली थी या नहीं, सवाल यह है कि क्या कानून के नाम पर गुंडागर्दी की इजाज़त है?

लखनऊ की जनता का गुस्सा उबल रहा है। सोशल मीडिया पर एक स्वर में लोग पुलिस से जवाब मांग रहे हैं—“क्या यही है आपकी तहज़ीब?”

अखिलेश यादव का हमला: “यह है भाजपा के ‘अमृतकाल’ की असलियत”

इस पूरे मामले पर समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने इस घटना को भाजपा शासन में महिलाओं की सुरक्षा और आत्मनिर्भरता के खोखले दावों की पोल खोलने वाला बताया।

अखिलेश यादव ने अपने फेसबुक पोस्ट में लिखा:

“*This is raw letter, in BJP rule:

  • ‘Women-Salute’
  • ‘Ease of Doing Business’
  • ‘Self-reliance’
  • ‘Public protector police’
  • ‘BJP Amritkal’*

Like BJP’s big and big breathtaking things.

Lucknow is the capital of UP and this incident belongs there. When there will be darkness under the lamp of the chief, then the rest of the state will be called dark city in the BJP rule. Police don’t have any free to be indecent to anyone, so such abuse and misbehavior is not possible until police get silent permission to power.

Immediate action is expected.

Disgraceful!

उन्होंने सवाल उठाया कि जब राजधानी लखनऊ में—जो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का कार्यक्षेत्र है—ऐसी घटनाएं घट रही हैं, तो बाकी राज्य में क्या हाल होगा? उनकी टिप्पणी का सार यही था कि पुलिस जब तक ‘ऊपर से’ मौन स्वीकृति न पाए, तब तक इस तरह की गुंडागर्दी संभव ही नहीं है।

अखिलेश का यह हमला भाजपा के ‘अमृतकाल’ पर सीधा तंज है, जहां सरकार ‘महिला सम्मान’ और ‘ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस’ जैसे जुमलों की बात तो करती है, लेकिन ज़मीनी हकीकत इससे कोसों दूर है।

मॉडलिंग से चाय तक—एक लड़की का इंकलाब

सिमरन गुप्ता कोई आम नाम नहीं। 2018 में ‘मिस गोरखपुर’ का ताज जीत चुकी यह लड़की कभी रैंप पर चलती थी। लेकिन जब हालात ने झटका दिया, तब उसने हार नहीं मानी। पिता मानसिक और शारीरिक रूप से अस्वस्थ हैं। कोविड काल में सिमरन की नौकरी चली गई, मॉडलिंग से आय बंद हो गई, घर चलाना मुश्किल हो गया।

बेटी ने तब यह नहीं कहा कि ‘कुछ नहीं हो सकता’, बल्कि वह बनी ‘मॉडल चायवाली’। पहले गोरखपुर यूनिवर्सिटी के हॉस्टल के सामने स्टॉल लगाया। स्टाइल में चाय परोसने वाली यह लड़की लोगों के दिलों में बस गई। उसका आत्मविश्वास, उसका अंदाज़, उसकी मेहनत—सबने मिलकर उसका ब्रांड बना दिया।

लखनऊ में कदम और संघर्ष की नई इबारत

गोरखपुर की सफलता के बाद सिमरन ने लखनऊ को चुना। इंजीनियरिंग कॉलेज चौराहे पर उसने “मॉडल चायवाली” नाम से स्टॉल शुरू किया। उसकी चाय के कई फ्लेवर, उसका प्रेज़ेंटेशन, उसकी बातें—हर चीज़ में वो आत्मबल था जो हर संघर्षकर्ता को प्रेरित करे।

देखते ही देखते यंग क्राउड उसके स्टॉल पर खिंचने लगी। सिमरन का इंस्टाग्राम फॉलोअर्स का आंकड़ा 29.5 हज़ार तक जा पहुँचा। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, वह 1 लाख रुपये प्रति माह तक की कमाई कर रही थीं। यही नहीं, अब उन्होंने अपनी दुकान भी खरीद ली है।

लेकिन सिस्टम को शायद उसकी चाय कड़वी लगने लगी थी…

जब एक लड़की अपने बलबूते आगे बढ़ने लगती है, जब वह खुद की मिसाल बन जाती है, तो अक्सर उसे ‘सिस्टम’ सहन नहीं कर पाता। यही हुआ सिमरन के साथ। अवैध वसूली से इनकार करना उन्हें महंगा पड़ गया।

पुलिस की चुप्पी, सरकार की खामोशी और जनता की चीख

घटना को अब 48 घंटे हो चुके हैं। पुलिस की तरफ़ से कोई स्पष्ट बयान नहीं आया। FIR हुई या नहीं, इसकी जानकारी भी अधूरी है। सत्तारूढ़ दल के नेताओं की तरफ़ से भी चुप्पी देखी जा रही है।

लेकिन जनता चुप नहीं। ट्विटर, इंस्टाग्राम, फेसबुक सब पर एक ही सवाल है—“क्या चाय बेचने वाली लड़की का कोई वजूद नहीं?” क्या सिमरन की गलती सिर्फ़ इतनी थी कि उसने डरना नहीं सीखा?

सिर्फ़ सिमरन नहीं, हर लड़की की कहानी है ये

यह घटना सिर्फ़ सिमरन की नहीं। यह कहानी है हर उस लड़की की, जो ख़ुद को किसी ‘हीरो’ का इंतज़ार किए बिना नायक बनने का साहस रखती है। जो कहती है—”मैं खुद ही अपनी कहानी लिखूंगी।”

सिमरन की कहानी को दबाने की हर कोशिश उस आग को और भड़का रही है, जो इस देश में बदलाव की मांग कर रही है। वह आग जो पूछ रही है—“क्या हम अब भी सुरक्षित हैं?”

चायवाली सिमरन को इंसाफ कब मिलेगा?

लखनऊ पुलिस की कार्यवाही कब होगी, यह अभी अनिश्चित है। लेकिन सोशल मीडिया पर बढ़ता जनदबाव यह साफ कर रहा है कि मामला यहीं खत्म नहीं होगा। सिमरन के लिए आवाज़ उठ रही है—युवा, महिलाएं, पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ता—सब एकजुट हैं।

आख़िर में…

लखनऊ की सड़क पर चाय की केतली से उठता भाप अब सिर्फ़ चाय का नहीं है। यह आवाज़ है एक बदलाव की। सिमरन गुप्ता का स्टॉल एक दुकान नहीं, एक प्रतीक है—उस भारत का जो बेटियों को सम्मान देता है, और उस भारत का भी जो बेटियों से डरता है।

“वो चाय बनाती थी, इसलिए नहीं कि उसके पास और कुछ नहीं था। वो चाय बनाती थी क्योंकि उसे पता था कि हौसलों की भट्टी में जोश की चाय सबसे तेज़ उबालती है।”

अब सवाल ये है—क्या हमारी व्यवस्था इस उबाल को थाम पाएगी या फिर एक और बहादुर बेटी किसी अंधेरे में खो जाएगी?


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