
मुंबई: देश की शिक्षा प्रणाली में बढ़ती प्रतिस्पर्धा और लगातार बढ़ते शैक्षणिक दबाव ने एक और मासूम जान ले ली। मुंबई के भांडुप इलाके में एक 15 वर्षीय छात्रा, अस्मी अक्षय चव्हाण ने पढ़ाई के तनाव से तंग आकर अपनी जान दे दी। अस्मी ने मंगलवार, 24 जून को एक ऊंची इमारत से कूदकर आत्महत्या कर ली। पुलिस मामले की जांच में जुटी है, लेकिन असली सवाल यह है कि आखिर कब तक हमारे बच्चे इस शिक्षा व्यवस्था की बली चढ़ते रहेंगे?
पुलिस से मिली जानकारी के अनुसार, अस्मी मुलुंड पश्चिम की रहने वाली थी। 24 जून की शाम करीब 6 बजे वह अपने दोस्त, 19 वर्षीय आदित्य अरुण से मिलने महिंद्रा स्प्लेंडर सोसाइटी, एलबीएस रोड, भांडुप वेस्ट गई थी। दोनों 32वीं मंजिल तक लिफ्ट से गए। बातचीत के दौरान अस्मी ने आदित्य से अपने पढ़ाई के तनाव और अवसाद की बात साझा की। आदित्य ने उसे समझाने की कोशिश की, लेकिन कुछ ही देर बाद अस्मी ने 30वीं और 31वीं मंजिल के बीच स्थित खिड़की से छलांग लगा दी।
पुलिस को घटना की सूचना मिलते ही वे मौके पर पहुंचे और अस्मी को तुरंत अग्रवाल जनरल अस्पताल ले जाया गया, जहां डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया। पुलिस ने आकस्मिक मृत्यु का मामला दर्ज कर लिया है और आगे की जांच जारी है।
यह घटना न सिर्फ एक परिवार की दुनिया उजाड़ गई, बल्कि भारतीय शिक्षा प्रणाली पर भी गहरे सवाल खड़े करती है। आज के दौर में बच्चों पर अच्छे नंबर लाने, टॉप करने और प्रतिस्पर्धा में बने रहने का ऐसा बोझ डाला जा रहा है कि वे अपने बचपन की मासूमियत और मानसिक शांति खो बैठे हैं। स्कूल, कोचिंग, प्रोजेक्ट, एग्जाम और पैरेंट्स की उम्मीदों का यह मिला-जुला दबाव कहीं न कहीं हमारे बच्चों को अंदर से तोड़ रहा है।
शिक्षा का उद्देश्य बच्चों को बेहतर इंसान बनाना है, न कि उन्हें इस कदर दबाव में लाना कि वे जीवन से हार मान लें। जरूरत है कि अभिभावक, शिक्षक और नीति-निर्माता इस दर्दनाक सच्चाई को समझें और ऐसी शिक्षा व्यवस्था विकसित करें जिसमें नंबरों की दौड़ से ज़्यादा बच्चों की खुशी और मानसिक स्वास्थ्य को महत्व दिया जाए।
कब तक हम ऐसी दुखद खबरों को पढ़ते रहेंगे? क्या अब भी वक्त नहीं आया कि हम अपनी शिक्षा प्रणाली पर गंभीरता से मंथन करें और बदलाव लाएं, ताकि कोई अस्मी फिर से इस सिस्टम की शिकार न बने?