June 17, 2025
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नैनीताल। वो शहर जहाँ झीलें हैं, सुकून है, और पहाड़ों की छांव में बसी एक शांत सी दुनिया। लेकिन 30 अप्रैल की रात ये शहर जल उठा। नफ़रत के शोले सिर्फ़ सड़कों पर नहीं, दिलों में भी भड़क गए।

रात करीब आठ बजे, एक महिला अपनी 12 साल की बच्ची के साथ मल्लीताल थाने पहुँची। उसकी शिकायत थी कि उसकी मासूम बच्ची के साथ बलात्कार हुआ है। आरोप था—73 वर्षीय मोहम्मद उस्मान पर, जो कि एक ठेकेदार हैं।

थाने में एफआईआर दर्ज हुई, लेकिन बाहर एक और ‘कार्रवाई’ शुरू हो गई थी।
भीड़ जुटने लगी थी।
और भीड़ सिर्फ़ इंसाफ़ नहीं चाहती थी, वो सज़ा अपने तरीक़े से देना चाहती थी।

🔥 “हमें सौंपो उस्मान को…”

ये आवाज़ें नारे बन चुकी थीं, और नारे अब पत्थर बन चुके थे।
भीड़ ने थाने के बाहर खड़ा रहना काफ़ी नहीं समझा।
वो मल्लीताल बाज़ार तक पहुँच गई।
दुकानें टूटने लगीं।
चेहरे पहचानकर चुन-चुनकर मुसलमान दुकानदारों को निशाना बनाया गया।
पास की जामा मस्जिद पर भी पत्थर बरसाए गए।

कभी प्रेमचंद के ‘नैनीताल’ में अब घृणा की बारिश हो रही थी।
पुलिस खामोश खड़ी थी, और सवाल चीख़ रहे थे।

🧕🏽 “जिसने देखा नहीं, वो मुख्य गवाह बना दी गई…”

अब इस मामले में एक नई परत खुली है।
वो महिला जो पीड़ित की पड़ोसी थी, और जिसे ‘मुख्य गवाह’ बताया गया, अब सामने आ गई हैं।

उनका कहना है—
“मुझसे झूठा बयान दिलवाया गया। मैं न तो घटना की चश्मदीद थी, न ही कुछ देखा। लेकिन दबाव इतना था कि सच कहने का साहस ही न बचा।”

इस ‘यू-टर्न’ ने केस की नींव हिला दी है।
क्या ये वाकई न्याय की खोज थी या फिर किसी ख़ास नाम के पीछे छिपा सुनियोजित उबाल?

🤐 न्याय बनाम जनसुनवाई

जब गवाह भी कहने लगे कि उन्हें गवाही के लिए मजबूर किया गया, तब सवाल उठता है कि क्या हम किसी इंसाफ़ की तलाश में हैं या फिर किसी एजेंडे की इबारत लिख रहे हैं?

इस केस में सबसे बड़ा नुक़सान हुआ है—सच का।
नाबालिग बच्ची अगर वाकई पीड़ित है, तो न्याय को शोर से अलग करके उसकी सच्चाई तक पहुँचना होगा।
और अगर ये पूरा मामला किसी अफ़वाह, किसी राजनीतिक या सांप्रदायिक उकसावे का हिस्सा था, तो समाज को आईना देखने की ज़रूरत है।

📍 सवाल वही हैं—पर जवाब धुँधले

क्या भीड़ को पहले से पता था कि आरोपी मुसलमान है?

क्या इस नाम को सुनते ही इंसाफ़ की जगह बदले की भूख जाग गई?

और अब जब गवाह खुद कह रही है कि उसने झूठ बोला, तो पुलिस की जांच कितनी निष्पक्ष थी?

मामले का सच, कैमरों की फ्लैश लाइट से नहीं—किसी मासूम की आँखों की नमी से निकलेगा…”

“क्या आरोपी का मज़हब ही उसकी गुनाहगारी की पहली शर्त बन गई?”

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