
🔹 हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ का अहम फैसला
इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने श्रावस्ती जिले के 27 मदरसों को तोड़े जाने और उनके खिलाफ की जा रही कार्रवाई पर रोक लगा दी है। यह अंतरिम आदेश न्यायमूर्ति जसप्रीत सिंह की ग्रीष्मावकाश कालीन एकल पीठ ने दिया।
🔹 याचिकाओं में एक मई के नोटिस को दी गई चुनौती
मदरसों की ओर से दाखिल याचिकाओं में उन नोटिसों को चुनौती दी गई थी, जो एक मई को जारी किए गए थे। इन नोटिसों में धार्मिक शिक्षा बंद करने और मदरसों को गिराने जैसी बातें कही गई थीं।
🔹 वकील ने दिया पूर्व आदेशों का हवाला
मदरसों की ओर से पेश अधिवक्ता अविरल राज सिंह ने अदालत को बताया कि ऐसे ही एक अन्य मामले में पहले हाईकोर्ट राहत दे चुका है। इसलिए इन याचिकाओं में भी याचियों को अपनी बात कहने का मौका मिलना चाहिए था।
🔹 सरकारी पक्ष समय पर नहीं दे सका जवाब
सरकारी वकील अदालत में समय पर मांगी गई जानकारी पेश नहीं कर सके। उन्होंने इसके लिए दो हफ्ते का और समय मांगा, जिसे अदालत ने स्वीकार कर लिया।
🔹 कोर्ट ने नोटिसों को बताया ‘बिना दिमाग लगाए’ जारी
कोर्ट ने देखा कि सभी नोटिसों का नंबर एक जैसा है, जिससे साफ होता है कि ये नोटिस बिना पर्याप्त सोच-विचार के एक जैसे तरीके से भेजे गए। अदालत ने कहा कि यह मामला न्यायिक हस्तक्षेप का बनता है।
🔹 3 जुलाई तक कोई कार्रवाई नहीं
कोर्ट ने अगली सुनवाई की तारीख 3 जुलाई तय की है। तब तक याचिकाकर्ताओं को अंतरिम राहत दी गई है। इसका मतलब है कि न तो मदरसों को तोड़ा जा सकता है और न ही उनके खिलाफ कोई उत्पीड़नात्मक कार्रवाई की जा सकेगी।
🔹 निष्कर्ष: प्रशासनिक प्रक्रिया पर गंभीर सवाल
इस मामले ने प्रशासनिक प्रक्रिया और धार्मिक शिक्षा से जुड़े मामलों में पारदर्शिता और संवेदनशीलता की जरूरत को फिर से सामने लाया है। कोर्ट की टिप्पणी इस ओर इशारा करती है कि जल्दबाजी में लिया गया कोई भी फैसला न सिर्फ कानून की भावना के खिलाफ है, बल्कि नागरिक अधिकारों का भी हनन है।