December 12, 2025
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नई दिल्ली | 15 सितंबर 2025: सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2023 की कुछ प्रमुख धाराओं को अस्थायी रूप से स्थगित कर दिया है। न्यायालय ने इन प्रावधानों को संविधान के मौलिक अधिकारों के खिलाफ बताते हुए कहा कि ये नागरिकों के संपत्ति अधिकारों और धार्मिक स्वतंत्रता को प्रभावित कर सकते हैं।

मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गावई और न्यायमूर्ति ए.जी. मसिह की पीठ ने यह आदेश देते हुए स्पष्ट किया कि जब तक इस कानून की संवैधानिक वैधता पर अंतिम सुनवाई नहीं होती, तब तक निलंबित धाराएं लागू नहीं होंगी।

किन धाराओं पर लगी रोक?

  • कलेक्टर की भूमिका पर रोक: संशोधन अधिनियम के तहत ज़िला कलेक्टर को यह अधिकार दिया गया था कि वह यह तय कर सके कि कोई संपत्ति वक्फ है या नहीं। सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रावधान पर रोक लगाते हुए कहा कि कलेक्टर को न्यायिक शक्ति देना “मनमाने अधिकार” देने के समान है, जो नागरिकों के संपत्ति अधिकारों का उल्लंघन करता है।
  • ‘वक्फ बाय यूजर’ की धारणा: न्यायालय ने इस अवधारणा पर भी आपत्ति जताई, जिसके तहत बिना किसी स्पष्ट दस्तावेज़ के भी वक्फ संपत्ति घोषित की जा सकती थी। कोर्ट ने कहा कि किसी तीसरे पक्ष के अधिकार केवल ट्रिब्यूनल के निर्णय से ही तय हो सकते हैं।
  • वक्फ बोर्ड और केंद्रीय वक्फ परिषद में गैर-मुस्लिमों की संख्या की सीमा: संशोधन के तहत बोर्ड में तीन से अधिक गैर-मुस्लिम और केंद्रीय परिषद में चार से अधिक गैर-मुस्लिम सदस्य नहीं हो सकते थे। इस प्रावधान को भी असंवैधानिक करार देते हुए फिलहाल के लिए स्थगित कर दिया गया है।
  • धार्मिक पहचान पर आधारित सीमाएं: वह प्रावधान भी निलंबित किया गया, जिसमें कहा गया था कि वक्फ संपत्ति का दान करने वाला व्यक्ति कम से कम पाँच वर्षों से इस्लाम धर्म का पालन करता हो।

पृष्ठभूमि और विरोध

वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2023 को अप्रैल में संसद द्वारा पारित किया गया था और राष्ट्रपति की स्वीकृति के बाद लागू किया गया। इसके खिलाफ देशभर में मुस्लिम संगठनों ने विरोध दर्ज कराया था। उनका कहना था कि यह कानून अल्पसंख्यक समुदाय की संपत्तियों पर सरकारी नियंत्रण बढ़ाने की कोशिश है।

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड सहित कई संगठनों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दायर की थीं। याचिकाकर्ताओं का तर्क था कि संशोधन अधिनियम भारत के संविधान के अनुच्छेद 14, 19 और 25 का उल्लंघन करता है।

क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने?

कोर्ट ने कहा कि किसी भी अधिनियम को चुनौती दिए बिना उसे रद्द नहीं किया जा सकता, लेकिन जहां अधिकारों का उल्लंघन स्पष्ट हो, वहां न्यायिक हस्तक्षेप आवश्यक है। अदालत ने यह भी जोड़ा कि संपत्ति अधिकार और धार्मिक स्वतंत्रता लोकतंत्र की नींव हैं, और राज्य को इन पर अतिक्रमण करने की अनुमति नहीं दी जा सकती।


आगे क्या?
सुप्रीम कोर्ट अब इस कानून की संवैधानिक वैधता की विस्तृत सुनवाई करेगा। तब तक के लिए, उपरोक्त प्रावधान लागू नहीं होंगे।

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