
उत्तर प्रदेश में ज़मीनों की क़ीमतें एक बार फिर से आम आदमी के लिए चिंता का सबब बनने जा रही हैं। आठ वर्षों के लंबे अंतराल के बाद ज़िला प्रशासन ने नए सर्किल रेट तय करने की प्रक्रिया लगभग पूरी कर ली है। जैसे ही यह नई दरें लागू होंगी, ज़मीन खरीदना और भी महंगा हो जाएगा और स्वाभाविक रूप से स्टांप ड्यूटी की दरें भी बढ़ेंगी।
नए सर्किल रेट की तस्वीर
एडीएम (वित्त एवं राजस्व) शुभांगी शुक्ला के अनुसार शहरी क्षेत्रों में सर्किल रेट में औसतन 45% और ग्रामीण क्षेत्रों में 35% की वृद्धि प्रस्तावित है। यह नई दरें बृहस्पतिवार से डीएम कार्यालय, एडीएम (वित्त) कार्यालय और सभी उप निबंधक कार्यालयों में आम जनता के अवलोकन और आपत्तियों के लिए रखी जाएंगी।
2 जुलाई 2025 तक नागरिक, अधिवक्ता, बिल्डर्स और अन्य हितधारक इस रेट लिस्ट पर आपत्ति दर्ज करा सकेंगे। प्रशासन का दावा है कि सभी आपत्तियों का निस्तारण सात दिन में किया जाएगा और इसके बाद नई दरें लागू कर दी जाएंगी।
2017 से अब तक क्यों नहीं बदले रेट?
आखिरी बार 2017 में सर्किल रेट संशोधित हुए थे। इसके बाद भले ही बाज़ार में रियल एस्टेट की कीमतें 50% से लेकर 80% तक बढ़ गईं, मगर सरकारी रिकॉर्ड में ज़मीनों की कीमतें पुरानी दरों पर ही टिकी रहीं। इसने एक ओर सरकार की राजस्व वसूली को प्रभावित किया तो दूसरी ओर ब्लैक मनी और अघोषित लेनदेन को बढ़ावा दिया।
कहां महंगी है ज़मीन?
जिला प्रशासन के आंकड़ों के मुताबिक एमजी रोड, सिविल लाइंस, और प्रमुख व्यापारिक केंद्रों में ज़मीन की कीमतें पहले से ही आसमान छू रही हैं। इन इलाकों में नए सर्किल रेट लागू होने पर स्टांप ड्यूटी में भारी बढ़ोतरी तय है।
कितनी बढ़ेगी स्टांप ड्यूटी की मार?
सर्किल रेट बढ़ने का सीधा असर स्टांप ड्यूटी और पंजीकरण शुल्क पर पड़ता है। उदाहरण के लिए यदि किसी ज़मीन का सर्किल रेट 1000 रुपये प्रति वर्गफुट था और अब वह 45% बढ़कर 1450 रुपये हो जाएगा, तो स्टांप ड्यूटी भी इसी नई दर पर वसूली जाएगी। इससे मकान खरीदना मध्यम वर्ग और निम्न आय वर्ग के लिए और मुश्किल हो जाएगा।
क्या है जनता और बिल्डर्स की चिंता?
रियल एस्टेट सेक्टर से जुड़े बिल्डर्स और अधिवक्ताओं का कहना है कि पहले से ही मंदी झेल रहे प्रॉपर्टी बाजार पर यह नया बोझ खरीदारों की संख्या और घटाएगा। आम आदमी, जो अपनी जिंदगी की पूंजी जोड़कर घर का सपना देखता है, उसके लिए ज़मीन का सपना और दूर हो जाएगा।
राजस्व बढ़ाने की कवायद या बोझ का नया अध्याय?
सरकार का तर्क है कि बढ़े सर्किल रेट से सरकारी खजाने को मजबूती मिलेगी और प्रॉपर्टी रजिस्ट्रेशन में पारदर्शिता आएगी। मगर सच्चाई यह है कि इससे कालेधन पर लगाम कम और ज़मीन खरीदने वालों पर अतिरिक्त आर्थिक बोझ ज़्यादा पड़ेगा।
जनता से संवाद कितना प्रभावी?
निश्चित रूप से जनप्रतिनिधियों और आम लोगों को दो जुलाई तक आपत्तियां दर्ज कराने का अधिकार दिया गया है। मगर सवाल यह है कि क्या प्रशासन इन आपत्तियों को महज औपचारिकता मानकर निस्तारित करेगा, या सच में जनता की आवाज़ को दरकिनार नहीं किया जाएगा?
निष्कर्ष
नए सर्किल रेट लागू होने से पहले यह ज़रूरी है कि सरकार और प्रशासन इस फैसले के सामाजिक और आर्थिक असर पर गंभीर मंथन करें। सर्किल रेट बढ़ाकर राजस्व जुटाना एक पहलू हो सकता है, मगर इससे घर और ज़मीन का सपना कहीं आम आदमी की पहुंच से बाहर न हो जाए।
यह वक्त है नीति-निर्माताओं को यह सोचने का कि विकास की दौड़ कहीं जनता पर बोझ बनकर तो नहीं टूट रही?