
“यह बाल्यावस्था लौटाने की लड़ाई है, केवल कानून नहीं।”
फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने हाल ही में घोषणा की है कि 15 साल से कम उम्र के बच्चों को सोशल मीडिया का उपयोग बैन किया जाएगा, और यदि यूरोपीय संघ ने सामूहिक कदम नहीं उठाया, तो फ्रांस अकेले यह योजना लागू करेगा।
🔪 एक अकस्मात हिंसा के बाद उठी आवाज

नजाँ शहर के एक स्कूल में 14 साल के छात्र द्वारा शिक्षक की चाकू से हत्या और एक पुलिसकर्मी को घायल करने की घटना ने पूरे देश को झकझोर दिया।
मैक्रों ने स्पष्ट कहा कि डिजिटल दुनिया में नियंत्रित अभिगम का अभाव इस हिंसा का एक महत्वपूर्ण कारण है।
📈 गंभीर आंकड़े — हिंसा और अपराध में उछाल
- यूके और यूएस स्टडीज़ के अनुसार, 60% किशोरों ने पिछले साल सोशल मीडिया पर वास्तविक हिंसा देखी है और 70% का कहना है कि हिंसा में सोशल मीडिया की भूमिका है journals.lww.com+3whiteblacklegal.co.in+3indianlegalsystem.org+3।
- 33% किशोरों ने हथियार दिखने पर भी एग्रेसिव रुख अपनाया ।
- 17-वर्षीय Beaumont के एक युवक ने बताया कि TikTok‑युक्त “car theft” ट्रेंड ने युवाओं को प्रभावित किया — सरेआम बाइक चोरी की घटनाओं में वृद्धि हुई beaumontenterprise.com।
- 14–15 साल के बच्चों में नैतिक सीमाओं का टूटना: सरकारों ने देखा कि 14% में आत्महत्या की प्रवृत्ति बढ़ी, 8% प्रयास तक हुए — सोशल मीडिया के मानसिक प्रभाव स्पष्ट हैं en.wikipedia.org।
- भारत में भी: एनसीआरबी के अनुसार हर साल लगभग 13,000 छात्र आत्महत्या करते हैं — और सोशल मीडिया‑प्रेरित cyberbullying इसका एक गहरा कारण ।
- एक अध्ययन में पाया गया कि 70% छात्र cyberbullying का सामना करते हैं, और 69% को ट्वीट या पोस्ट में अपमानित किया गया ।
📱 सोशल मीडिया — सीख का स्रोत या खतरनाक मैदान?
- प्लेटफॉर्म्स में age‑verification का अभाव: ज्यादातर भारतीय बच्चे झूठी उम्र दाखिल कर सोशल मीडिया पर पहुंच जाते हैं theguardian.com+2indianlegalsystem.org+2thetimes.co.uk+2।
- Algorithm-driven radicalization: TikTok जैसे प्लेटफॉर्म्स किशोरों को चरमपंथ या हिंसा के लिंक रिपीट करते रहते हैं — ये केस ऑस्ट्रिया और ब्रिटेन में सामने आ चुके हैं ।
- मानसिक स्वास्थ्य संकट: अत्यधिक स्क्रीन टाइम से hallucinations, आक्रामकता, डिप्रेशन में वृद्धि देखी गई है—13 साल के 37% बच्चों में hallucination जैसी समस्याएँ हैं nypost.com।
🇫🇷 फ्रांस का हिम्मत वाला संगीन फैसला
- आयु-आधारित प्रतिबंध: 15 से कम उम्र के बच्चों को सोशल मीडिया से दूर रखने की नीति।
- स्कूलों में जागरूकता पाठ्यक्रम: ब्रिटिश ड्रामा ‘Adolescence’ का उपयोग किया जा रहा है ताकि बच्चों में सोशल मीडिया की हिंसा की समझ जागे thetimes.co.uk।
- तकनीकी समाधान: प्लेटफॉर्म्स को age-verification तकनीक लगाने का दबाव।
🇮🇳 भारत को क्यों चाहिए यह कदम?
हमारे यहां भी बच्चे स्मार्टफोन में खो रहे हैं, उनकी ज़मीन पर फ़ैलती है अशांति, भय, हिंसा, मानसिक उथल-पुथल।
- किस घर में ‘रील्स’ की वजह से बच्चा हवाई भ्रम में नहीं खो रहा?
- किस अस्पताल में ‘मैं नहीं कर सकता…’ जैसी मानसिक दुविधा नहीं उभर रही?
- कहां तक हम करेंगे आंख मूंद कर देखने का नाटक?
✨ गहन नैतिक शिक्षा — सिर्फ रोक से ज्यादा जरूरी
- Digital Boundaries: स्मार्टफोन के घंटों और नेटवर्क प्लेटफॉर्म्स की आयु सीमा तय हो।
- स्क्रूटनी पाठ्यक्रम: स्कूलों में cyber-safety, media literacy, mental health की शिक्षा अनिवार्य हो।
- मानसिक देखरेख: स्कूली स्तर पर counselors हों, ताकि बच्चे ऑनलाइन अभिसरण से बाहर आ सकें।
🧭 नैतिक निष्कर्ष — भारत की सोच का एजेंडा
फ्रांस की हिम्मत हमें दिखाती है —
“बचपन को स्क्रीन में न खोने दें, उसे वापस जमीन पर लौटाएं।”
क्या हम बच्चों को डिजिटल ‘जंजीर’ में जकड़कर बड़े होने देंगे, या उन्हें एक सुरक्षित, समझदार, और शांत जीवन देंगे?
यह सिर्फ तकनीकी कदम नहीं — यह अनेकों भावों, संस्कारों और भविष्य की सुरक्षा है।