
सिर्फ़ अठारह दिनों में, दो छोटी बच्चियों की दुनिया उजड़ गई — पहले माँ गईं, फिर पिता भी लौटकर नहीं आए।
37 वर्षीय अर्जुन पाटोलिया अपनी पत्नी भारती से किया एक वादा निभाने के लिए भारत आए थे — उनकी अंतिम इच्छा थी कि उनके जाने के बाद उनकी राख उनके जन्मस्थान गुजरात में विसर्जित की जाए।
कैंसर से लंबी और साहसी लड़ाई लड़ने के बाद भारती ने दुनिया को अलविदा कह दिया। उनका शरीर हार गया, लेकिन उनकी आत्मा उस वादे पर भरोसा कर गई जो अर्जुन ने किया था।
अर्जुन अपनी पत्नी की अस्थियों के साथ अकेले भारत आए। उनकी आँखों में आँसू थे, दिल में भारती की यादें और दो छोटी बेटियों के लिए एक अधूरा भविष्य।
लेकिन किस्मत… उसे तो शायद कुछ और ही मंज़ूर था।
जिस एयर इंडिया की फ्लाइट से वे गुजरात आए थे, वही विमान हादसे का शिकार हो गया। अर्जुन की मौत हो गई। दो बच्चियां — एक चार साल की, दूसरी आठ साल की — अनाथ हो गईं। माँ के जाने का ग़म अभी सूखा भी नहीं था, कि पिता भी हमेशा के लिए चले गए।
वे दोनों बच्चियां शायद अब भी दरवाज़े की ओर देखती होंगी — शायद छोटी अब भी मानती हो कि पापा लौट आएंगे। और बड़ी, माँ-पापा की तरह मज़बूत बनने की कोशिश में, ख़ुद ही रोना भूल गई होगी।
अर्जुन स्टैनमोर, नॉर्थ-वेस्ट लंदन की एक फर्नीचर कंपनी में काम करते थे। उन्हें जानने वाले कहते हैं, वह बेहद शांत, मेहनती और अपने परिवार से बेहद प्यार करने वाले इंसान थे।
उनकी एक सहयोगी ने बच्चियों की मदद के लिए एक फंडरेज़र शुरू किया — जिसने पूरी दुनिया को भावुक कर दिया। अब तक £370,000 से ज़्यादा जुटाए जा चुके हैं — न सिर्फ़ पैसे में, बल्कि दुआओं और आंसुओं में भी।
एक पिता जो अपने जीवन की सबसे बड़ी तकलीफ में भी अपनी पत्नी का सपना पूरा करने निकला था… आज वो बच्चियों की यादों में ही ज़िंदा है।
माँ भारती की हिम्मत, और पिता अर्जुन का प्यार — इन दो बहनों के भीतर अब भी कहीं साँस ले रहा है। लेकिन उनका बचपन… अब सवालों और सन्नाटे से घिरा है।
दुनिया अब उनके माँ-बाप का हाथ नहीं थाम सकती। लेकिन वो ममता और वो साया अब दुआओं में ज़िंदा रहेगा — और शायद यही दुआएं उन्हें जीना सिखा दें, फिर से।